अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पर हरा दस्तखत तो बेटा, लाल हो तो बेटी
कन्या को यूं तो लक्ष्मी रूप माना जाता है, मगर पुत्रमोह से लोग निकल नहीं पाए हैं। यह मोह इस कदर है कि बेटियों को कोख में ही मारने से लोगों के हाथ नहीं कांपते। अल्ट्रासाउंड केंद्र इसमें अहम भूमिका निभाते हैं। प्रतिबंध के बाद भी भ्रूण लिंग जांच धड़ल्ले से हो रही है। कोई स्त्री-पुरुष की तस्वीरों से गर्भ में बेटा-बेटी होने की सांकेतिक तस्दीक कर रहा है तो कहीं हस्ताक्षर के रंगों से इशारा किया जाता है। अभी गुरुवार को ही जिले के एक अल्ट्रासाउंड केंद्र पर एक अप्रशिक्षित व्यक्ति जांच करता मिला। इस पर सेंटर को सील कर दिया गया।
जिले में प्रसव पूर्व गर्भ की जांच का खेल जोरों पर है। जिले में 100 से अधिक अवैध मशीनें संचालित हो रही हैं। यह सभी पोर्टेबल मशीनें ही हैं। बीते तीन साल में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ऐसे 25 अवैध केन्द्रों पर कार्रवाई कर उन्हें सील कर दिया है। बीते गुरुवार को सहजनवा में अल्ट्रासाउंड सेंटर पर अप्रशिक्षित व्यक्ति जांच करता मिला। सेंटर के अंदर एक कमरे में बेड और सर्जिकल उपकरण मिले। मौके पर कोई डॉक्टर या रेडियोलॉजिस्ट नहीं मिला। डॉक्टर के पहले से हस्ताक्षर वाले कोरे कागज मिले। इस पर जांच रिपोर्ट कर्मचारी दे रहा था। टीम ने सेंटर को सील कर दिया। एक और बानगी 4 अक्तूबर की है। स्वास्थ्य विभाग की टीम ने पिपराइच में छापा मारा। बगैर नाम के संचालित हो रहे अस्पताल में पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड मशीन, दो बेड का वार्ड और ऑपरेशन के उपकरण मिले। मौके पर दो गर्भवतियां भी मिलीं। टीम ने सेंटर को सील कर दिया। पुलिस ने चार लोगों को मौके से दबोचा और मामूली धारा में कार्रवाई कर छोड़ दिया।
हस्ताक्षर से करते हैं संकेत
बीते डेढ़ साल में मझगांवा के जीवन ज्योति नर्सिंगहोम, खजनी के कर्मा हॉस्पिटल, ढेबरा बाजार में सावित्री नर्सिंग होम और मछली बाजार स्थित एस राज हॉस्पिटल के खिलाफ स्थानीय लोगों ने शिकायत की। लोगों ने विभाग को बताया कि यहां पर गर्भस्थ शिशु की जानकारी देने के लिए डॉक्टर संकेतों का प्रयोग करते हैं। कहीं अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट पर हरे दस्तखत तो बेटा, लाल हो तो बेटी तो कहीं पर स्त्री-पुरुष के चित्रों के संकेत के जरिए पहचान बताई जा रही है। इन शिकायतों की जांच की गई। इन सभी सभी अस्पतालों में अपंजीकृत अल्ट्रासाउंड की पोर्टेबल मशीनें मिलीं। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग के कान खड़े हो गए।
तीन साल, 21 छापे, असर रत्तीभर नहीं
ऐसा नहीं है कि अवैध अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर कार्रवाई नहीं की गई। बीते एक दशक में 31 से अधिक अवैध सेंटरों के खिलाफ कार्रवाई की गई। सबसे ज्यादा कार्रवाई बीते तीन साल में हुई है। तीन साल में 21 मशीनों को सील किया गया। इसके बावजूद अवैध सेंटरों के संचालकों पर असर नहीं पड़ रहा है। मुखबिर योजना में विभाग को आज तक एक भी सफलता नहीं मिली है।
हरियाणा से लाई जाती हैं मशीनें, लागत नाममात्र, कमाई मोटी
सूत्रों की मानें तो जिले में अल्ट्रासाउंड की अधिकांश पोर्टेबल मशीनें हरीयाणा से सेकंड हैंड खरीदकर लाई गई हैं। ये मशीनें संचालक अधिकतम डेढ़ लाख रुपये में खरीद कर लाते हैं। बताते हैं कि एक गर्भस्थ शिशु के लिंग की पहचान बताने पर सेंटर संचालक 10 से 20 हजार रुपये तक कमाते हैं। इतनी ही रकम गर्भपात कराने के लिए सेंटर संचालक लेते हैं।
गोरखपुर का लिंगानुपात नहीं सुधरा
जिले में बेतहाशा बढ़े अल्ट्रासाउंड सेंटरों के कारण जिले में लिंगानुपात बिगड़ गया है। सबसे ज्यादा गिरावट छह वर्ष तक के बच्चों के लिंगानुपात में हुई है। जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2001 में जिले में छह वर्ष तक के प्रति एक 1000 लड़कों पर 934 लड़कियां थीं। वर्ष 2011 में सिर्फ 909 लड़किया ही रहीं। यह गिरावट 25 अंकों की रही। इसने सरकार को चिंता में डाल दिया। एचएमआईएस के आंकड़ों में भी लिंगानुपात 917 ही रहा।
बीते कुछ सालों में सक्रियता बढ़ी है। विभाग लगातार कार्रवाई कर रहा है। सूचनाएं मिल रही हैं। इसका असर भी दिख रहा है।
डॉ. एन के पाण्डेय, एडिशनल सीएमओ
सहजनवा में दो पंजीकृत सेंटर ऐसे मिले जहां डॉक्टर नदारद थे। एक अप्रशिक्षित व्यक्ति अल्ट्रासाउंड कर रहा था। यह खतरनाक परंपरा है। ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डॉ. श्रीकांत तिवारी , सीएमओ